बंजारानामा / नज़ीर अकबराबादी
I liked a snippet from "BANJARANAMA" by Nazir (written way back in late 18th century) this week and wanted to share it with you. In a simple way he describes the futility of worldly material gain . I believe many of us have an untold story, sweet or bitter, sharing gives comfort and joy. (टुक हिर्सो-हवस= लालच, क़ज़्ज़ाक़ = डाकू, अजल= मौत, शुतर= ऊंट) टुक हिर्सो-हवस को छोड़ मियां, मत देस विदेश फिरे मारा। क़ज़्ज़ाक़ अजल का लूटे है, दिन रात बजाकर नक़्क़ारा। क्या बधिया, भैंसा, बैल, शुतर क्या गोने पल्ला सर भारा। क्या गेहूं, चावल, मोंठ, मटर, क्या आग, धुंआ और अंगारा। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥1॥ गर तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है। ऐ ग़ाफ़िल, तुझ से भी चढ़ता एक और बड़ा व्यापारी है। क्या शक्कर, मिश्री, क़ंद, गरी, क्या सांभर मीठा खारी है। क्या दाख, मुनक़्क़ा सोंठ, मिरच, क्या केसर, लौंग, सुपारी है। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥2॥ तू बधिया लादे बैल भरे, जो पूरब पश्चिम जावेगा। या सूद बढ़ाकर लावेगा, या टोटा घाटा पावेगा। क़ज़्ज़ाक अजल का रस्ते में जब भाला मार गिरावेगा। धन, दौलत, नाती पोता क्या, एक कुनबा काम न आवेगा। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥3॥ हर मंजिल में अब साथ तेरे यह जितना डेरा डंडा है। ज़र दाम दिरम का भांडा है, बन्दूक सिपर और खाँड़ा है। जब नायक तन का निकल गया, जो मुल्कों मुल्कों हांडा है। फिर हांडा है न भांडा है, न हलवा है न मांडा है। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥4॥ जब चलते-चलते रस्ते में यह गौन तेरी ढल जावेगी। एक बधिया तेरी मिट्टी पर, फिर घास न चरने आवेगी। यह खेप जो तूने लादी है, सब हिस्सों में बंट जावेगी। धी, पूत, जमाई, बेटा क्या, बंजारिन पास न आवेगी। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥5॥ यह खेप भरे जो जाता है, यह खेप मियां मत गिन अपनी। अब कोई घड़ी, पल साअत में, यह खेप बदन की है कफ़नी। क्या थाल कटोरे चांदी के, क्या पीतल की डिबिया ढकनी। क्या बरतन सोने चांदी के, क्या मिट्टी की हंडिया चपनी। सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा॥6॥